पहचान

पहचान क्या है? आप कहेंगे जो समाज को आपका परिचय दे, वही आपकी पहचान है। जो आपके जीवन और अस्तित्व का बोध कराए, वही आपकी पहचान है। परंतु लोग अपने अस्तित्व को कई नजरिए से देखते हैं। कुछ अपने पिता एवं परिवार के द्वारा खुद का परिचय देते हैं। कुछ समाज में अपने जानने वालों द्वारा खुद का परिचय देते हैं, तथा कुछ अपने कर्मों द्वारा अपनी पहचान सब तक पहुंचाते हैं।

लेकिन समाज आपको कितना जानता है या समझता है, उससे अधिक महत्वपूर्ण है कि आप खुद को कितना जानते हैं। जिन लोगों के साथ आप मिलते हैं, उठते–बैठते हैं, वे आपको उतना ही जानते हैं जितना आपका रहन सहन, दिनचर्या एवं आपका व्यवहार उन्हें बताता है। लेकिन वह सच है या मिथ्या यह सिर्फ आप जानते हैं।

इन सबसे कहीं ऊपर आता है आपका खुद से परिचित होना। अपनी योग्यता को पहचानना, अपने चरित्र का आंकलन करना एवं अपनी गलतियों का बोध होना ही आपको खुद का परिचय देता है। जिस व्यक्ति को स्वयं के ही इन गुणों एवं अवगुणों का बोध नहीं होता, वह व्यक्ति सिर्फ सामाजिक छवि को ही अपना सत्य एवं अपना परिचय मान लेता है। तथा सामाजिक तौर पे अपने को उत्तम रखने की दौड़ में लगा रहता है।

लेकिन क्या सिर्फ सामाजिक छवि को ही खुद का परिचय मानना सही है? क्या सामाजिक बंधनों में खुद को बांध कर किसी व्यक्ति को अपने गुणों का सही ज्ञान मिल सकता है? मुझे तो नही लगता।

आपके अस्तित्व का, आपके चरित्र का असली परिचय तब मिलता है, जब आप खुद को विषम परिस्थिति में पाते हैं एवं कठिन समय में जिस विचारधारा के आधार पर आप अपने जीवन का, अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हैं। क्योंकि आपको अपनी क्षमता का ज्ञान भी तभी होता है जब आपके समक्ष कोई ऐसी दुविधा या परिस्थिति आती है, जो आपकी वास्तविकता का बोध न केवल समाज को बल्कि आपको भी कराती है। और यही वह समय होता है जो आपको स्वयं से परिचित कराता है।

जिस व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का ज्ञान होता है, अपने चरित्र का ज्ञान होता है एवं अपने मन्तव्य का ज्ञान होता है, वो व्यक्ति एक अलग दृष्टिकोण से खुद का परिचय देता है। ऐसे व्यक्ति के लिए सामाजिक छवि के मायने कुछ नही रह जाते, क्योंकि वो जानता है उसकी वास्तविकता सामाजिक सोच से भिन्न हो सकती है, लेकिन उसके इरादे, उसकी नीयत एवं परिस्थिति के अनुसार लिए गए उसके निर्णय उसकी असली पहचान बताते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति जीवन भर खुद को प्रतिष्ठित बनाने की दौड़ में लगा रहता है। समाज आप से क्या आशा करता है, या आपको किस रूप में देखना चाहता है, सदा ही एक तरह का दबाव बनाता है आप पर। जिस के कारणवश मनुष्य अपने व्यक्तित्व के विपरीत खुद की छवि बनाने के प्रयास में लग जाता है। और खुद को अपने भीतर की वास्तविकता से दूर ले जाता है।

यह सामाजिक दबाव, कभी भी आपको खुद से अवगत नही होने देता। खुद को समाज की आशाओं में दबाकर भेंड़ चाल में लग जाना, सिर्फ आपको भीड़ का हिस्सा बनाता है। आपके भीतर की क्षमताओं का ज्ञान आपको तभी मिलेगा, जब आप आत्म मंथन करेंगे और यह जानने का प्रयास करेंगे कि आप में ऐसा क्या है जो आपको सबसे अलग बनाता है।

आशा करता हूं कि आपको इस लेख के द्वारा कुछ नया सीखने को मिला तथा स्वयं के बारे में जानने हेतु कई अनछुए पहलू आपके समक्ष मैं रखने में सफल रहा। आत्म मंथन करते रहिए, एवं अपने भीतर के विशेष गुणों को पहचानिए जो आपको सबसे भिन्न और उत्तम बनाते हैं। वही आपका सत्य है, वही आपकी पहचान है।

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